भारत में 1 जुलाई से लागू होगें 3 नए कानून, क्या होगा खास, जानें

दिल्ली (द स्टैलर न्यूज़), ज्योति गंगड़। एक जुलाई से भारत में तीन नए कानून लागू होने जा रहे है। अब न्यायालय में लंबित आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए पीड़ित को कोर्ट में अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिलेगा। न्यायालय पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना मुकदमा वापस लेने की सहमति नहीं देगा।

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डीजीपी मुख्यालय में कानूनों के महत्वपूर्ण पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई। डीजीपी प्रशांत कुमार ने कहा कि नए कानूनों की मूल भावना तकनीक का अधिक से अधिक प्रयोग कर यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी स्थित में वादी (शिकायतकर्ता) का उत्पीडन न हो तथा कोई भी निर्दोष व्यक्ति दंडित न हो। डीजीपी ने बताया कि एनआइसी ने ई-साक्ष्य एप बनाया है, जिससे घटनास्थल की वीडियोग्राफी की जा सकेगी तथा उसे डिजीलाकर में सुरक्षित किया जा सकता है। इससे कोर्ट में साक्ष्य पेश करने में किसी भी प्रकार की तकनीकी बाधा नहीं होगी।

  • 1. विदेश में रहकर अथवा रहने वाला कोई व्यक्ति यदि कोई घटना कराता है तो वह भी आरोपित बनेगा।
  • 2. अपराध में किसी बालक को शामिल कराने वाले को तीन से 10 वर्ष तक की सजा की व्यवस्था की गई है।
  • 3. पांच व उससे अधिक व्यक्तियों की भीड़ द्वारा मूल वंश, जाति, समुदाय, लिंग व अन्य आधार पर किसी व्यक्ति की हत्या पर आजीवन कारावास से मृत्युदंड तक की सजा।
  • 4. राजद्रोह के स्थान पर भारत की संप्रभुता, एकता व अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य को धारा 152 के तहत दंडनीय बनाया गया है।
  • 5. चोरी एक से अधिक बार करने वाले को पांच वर्ष तक के कारावास की सजा।
  • 6. छोटे अपराध जिनमें तीन वर्ष से कम की सजा है, उनमें आरोपित यदि 60 वर्ष से अधिक आयु का है अथवा गंभीर बीमार/आशक्त है तो उसकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस उपाधीक्षक या उससे वरिष्ठ अधिकारी की अनुमति लेना अनिवार्य।
  • 7. निजी व्यक्ति द्वारा किसी आरोपित को पकड़ने पर उसे छह घंटे के भीतर पुलिस के हवाले करना होगा।
  • 8. गंभीर अपराध की सूचना पर घटनास्थल पर बिना विचार करे शून्य पर एफआइआर दर्ज होगी। ई-एफआइआर की दशा में सूचना देने वाले व्यक्ति को तीन दिन के भीतर हस्ताक्षर करने होंगे।
  • 9. एफआइआर की प्रति अब सूचनादाता के साथ-साथ पीड़ित को भी मुफ्त दी जाएगी।
  • 10. तीन से सात वर्ष से कम की सजा वाले अपराध में थानाध्यक्ष, पुलिस उपाधीक्षक अथवा उससे वरिष्ठ अधिकारी की अनुमति लेकर एफआइआर दर्ज करने से पहले 14 दिन के भीतर प्रारंभिक जांच कर सकेंगे।
  • 11. दुष्कर्म व एसिड अटैक के मामले में विवेचना के दौरान पीड़िता का बयान महिला मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाएगा। महिला मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति में पुरुष मजिस्ट्रेट महिला अधिकारी की मौजूदगी में बयान दर्ज करेंगे।

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