मन की शक्ति बहुत बड़ी है, सब कुछ इसके अंदर समा सकता है: आचार्य चंद्र मोहन

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। योग साधन आश्रम मॉडल टाउन में साप्ताहिक सत्संग के दौरान प्रवचन करते हुए मुख्य आचार्य चंद्र मोहन जी ने कहा कि सबके भीतर इच्छा होती है कि वह जीवन में अच्छे मार्ग पर चले, लेकिन यह मार्ग कठिन होता है। हमारे सामने दो ही मार्ग होते हैं एक अच्छा और एक बुरा। लेकिन हमने एक पर ही चलना होता है। जीवन में हम एक चौराहे पर खड़े होते हैं। हमें फैसला लेना होता है कि हमने किस मार्ग पर चलना है। हमारे शास्त्रों में भी दोनों मार्गों का वर्णन मिलता है।

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हमारे कल्याण वाला जो मार्ग है उसे श्रेय मार्ग कहते हैं। दूसरा मार्ग जो हमको अच्छा लगता है जिसमें बहुत कुछ प्राप्त होता है तथा सुख भी मिलता है उसे प्रिय मार्ग कहते हैं। लेकिन इसके नतीजे बाद में ठीक नहीं होते। इसीलिए इसे माया का मार्ग भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि जो मार्ग पहले सुख देता है बाद में दुख का कारण बनता है वह प्रिय मार्ग है, लेकिन जो मार्ग पहले थोड़ा दुख देता है बाद में सुख देता है वही हमारे लिए श्रेय मार्ग है। उन्होंने कहा कि यह दोनों मार्ग हमारे मन के लिए भी है। प्रिय मार्ग में मन कहता है कि खाओ पियो मौज करो। जबकि श्रेय मार्ग में मन इन चीजों से अलग होकर भक्ति करता है, प्रभु में लगता है। जिससे हमारा कल्याण होता है। यह हमारी आत्मा के लिए भी है। हमने देखना है की मन किस तरफ लेकर जाना है। इसके लिए एक युक्ति है। जिसका नाम योग है, अर्थात मन को प्रिय मार्ग की बजाय श्रेय मार्ग की तरफ लगाओ। प्रिय मार्ग वाला झूठ पर भी चलता है। इससे पहले तो सुख मिलता है लेकिन इसके परिणाम ठीक नहीं होते। मन का स्वभाव टिकना अथवा भटकना है। प्रिय मार्ग में यह भटकता है। श्रेय मार्ग में मन को टिकाना होता है। इससे शांति मिलेगी। मन की शक्ति बहुत बड़ी है। सब कुछ इसके अंदर समा सकता है। उन्होंने कहा कि हमारे शास्त्र कहते हैं की मन को कहीं भी टीकाओ। जैसी भी इच्छा हो जिसमें भी मन लगे उसी में टिकाले। किसी स्थूल वस्तु में, किसी भी भगवान के स्वरूप में मन को टिकाओ। ज्योति में प्रकाश में मन को टिकालो। हमारी पांच ज्ञानेंद्रिय हैं। जिनके अपने-अपने विषय हैं। इनको संभाल कर रखो। मन आत्मा से जुड़ा है। मन ही बंधन व मोक्ष का कारण बनता है। इसलिए मन को ठीक रखने के लिए श्रेय मार्ग पर चलो।

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